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दिन पतझड़ का
 
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पीला-सा था झरा-झरा
 
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छुट्टी का दिन था
 
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वर्षा की झड़ी थी भीग रहा था मस्कवा
 
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चल रही थी बेहद तेज़ ठंडी हवा
 
चल रही थी बेहद तेज़ ठंडी हवा
 
 
खाली बाज़ार, खाली थीं सड़कें
 
खाली बाज़ार, खाली थीं सड़कें
 
 
जैसे भूतों का डेरा
 
जैसे भूतों का डेरा
 
 
खाली उदास मन था मेरा
 
खाली उदास मन था मेरा
 
  
 
तुमको देखा तो झुलस गया तन
 
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हुलस गया मन
 
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बिजली चमकी हो जो घन
 
बिजली चमकी हो जो घन
 
 
लगने लगा फिर से जीवन यह भरा-भरा
 
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तुम आईं तो आया वसन्त
 
तुम आईं तो आया वसन्त
 
 
दिन हो गया हरा
 
दिन हो गया हरा
 
  
 
1996 में रचित
 
1996 में रचित
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11:32, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

दिन पतझड़ का
पीला-सा था झरा-झरा

छुट्टी का दिन था
वर्षा की झड़ी थी भीग रहा था मस्कवा
चल रही थी बेहद तेज़ ठंडी हवा
खाली बाज़ार, खाली थीं सड़कें
जैसे भूतों का डेरा
खाली उदास मन था मेरा

तुमको देखा तो झुलस गया तन
हुलस गया मन
बिजली चमकी हो जो घन
लगने लगा फिर से जीवन यह भरा-भरा

तुम आईं तो आया वसन्त
दिन हो गया हरा

1996 में रचित