भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन बूड़ौं विदेसी ना जारे / ईसुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन बूड़ौं विदेसी ना जारे,
रूप जाब थके हौ तुम हारे।
ससुर हमारे गये परदेसै,
छाये विदेस पिया प्यारे।
कर लइयो आराम भवन में
लाल पलंग दें लटकारे
हमनें सुनी एई गलियन में
गये वटोई दो मारे।
काटौ सुख से रेंन ईसुरी
उठ जइयो यार मोर पारें।