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दिन / श्रीनाथ सिंह

कैसा है देखो सुंदर दिन।
जो चाहे सब सकते हो गिन
आंखे लख सकतीं हरियाली
फूल तोड़ सकता है माली।
चाहे जहाँ अकेले जाओ।
खेलो, खाओ, पढ़ो पढ़ाओ।
नहीं किसी का अब कुछ डर है
सारा जग अपना ही घर है।
सड़कों पर कोलाहल छाया।
यह लो एक मदारी आया
बजा रहा है डमरू डम डम।
नचा रहा है भालू छम छम।
मंदिर में हैं डटे पुजारी।
भीड़ मदरसे में है भारी।
खुले दुकानों के हैं ताले।
चीख रहे हैं फेरीवाले।
कौवे कां कां बोल रहे हैं।
कुत्ते बिल्ली डोल रहे हैं।
अम्मा काढ़ रही हैं जाली।
आ बैठी है चूड़ी वाली।
अंधकार जो था अति छाया।
जिसने हमसे जगत छिपाया
देखो बन कर वही उजाला।
दिखलाता है दृश्य निराला।
तितली और पतंगे प्यारे
चींटी चिड़ियाँ भौरें कारे।
लगे काम में हैं सब अपने।
नहीं देखता कोई सपने।
बच्चों, तुम भी काम करो कुछ।
दिन में मत आराम करो कुछ।
इसीलिये है चतुर विधाता।
दिन का सुंदर समय बनता।