दिलकशी वक़्त की बढ़ी होगी
हाँफकर रोशनी बुझी होगी
चंद झोंके हवा के आएंगे
एक खिड़की जहाँ खुली होगी
माँ रिवाजों की शोख़ बस्ती में
भाई-भाई में कल बँटी होगी
उनके आने की एक आहट से
धूप में चांदनी बिछी होगी
वो हथेली जिसे न छू पाया
उसको मेरी बहुत कमी होगी