भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिलकशी वक़्त की बढ़ी होगी / अनिरुद्ध सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिलकशी वक़्त की बढ़ी होगी
हाँफकर रोशनी बुझी होगी

चंद झोंके हवा के आएंगे
एक खिड़की जहाँ खुली होगी

माँ रिवाजों की शोख़ बस्ती में
भाई-भाई में कल बँटी होगी

उनके आने की एक आहट से
धूप में चांदनी बिछी होगी

वो हथेली जिसे न छू पाया
उसको मेरी बहुत कमी होगी