दिलक़श है शामेरौशन सब कुछ नया नया है
बस सभ्यता का सूरज पश्चिम में ढल गया है
चेहरों की बदगुमानी महलों के आइनों में
बढ़ती ही जा रही है आख़िर ये राज़ क्या है
क्यों धूल उड़ रही है अब भी मेरे ज़ेहन में
नफ़रत की आँधियों का मौसम गुजर गया है
अब प्रेम बासना सब एक दीखते हैं
ऐ रौशनी बता दे आख़िर ये राज़ क्या है
चेहरों से सज रहीं हैं बाजार की दुकाने
'राकेश' देखो मंज़र कितना नया नया है