Last modified on 1 जुलाई 2015, at 18:34

दिलावन दिलावन / रमणिका गुप्ता

'दिलावन दिलावन' आयु-बाबा होड़
समय बढ़ गया
'खड़ा नये मोड़'
'दिलावन दिलावन' आयु-बाबा होड़
गुफ़ाओं से निकले तब से वहीँ हो
जंगल में ज़िन्दा
रहते अभी हो
तुम्हारी नुमाइश 'उत्सव' लगाते
पिछड़ी लकीरों का गौरव बताते
न भाषा सिखाते
न लिपियाँ बनाते
पीछे समय से तुम्हें ले ले जाते
'जंगल का मानुष' बताते बेजोड़
'दिलावन दिलावन' आयु-बाबा होड़
तीरों से तरकस तेरी सजाते
नाचों से महफ़िल अपनी रचाते
गीतों के मुखड़े तेरे चुराकर
तेरी धुनों पे 'मुद्रा कमाते'
तुझे न सिखाते घटाव-व-जोड़
'दिलावन दिलावन' आयु-बाबा होड़
तेरी ज़मीं को भी अपना बताते
तेरी ज़मीं को ही क़ब्ज़े में लाते
पहचान तेरी दिनों-दिन मिटाते
तुझे बस बताते लगो कैसे गोड़
'दिलावन दिलावन' आयु-बाबा होड़!