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दिलों में सभी के , मोहब्बत जगा दें / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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दिलों में सभी के , मोहब्बत जगा दें
भुला दें ,भुला दें , गमों को भुला दें

तुफानों का रुख मोड़ दें तुम कहो तो
समंदर कि लहरों, को झुकना सिखा दें

न तुम पूछो उनकी अदाओं का आलम
वो जुल्फ़ों को झटकें यूं बिजली गिरा दें

हवा दरमियाँ से न गुज़रे ज़रा भी
यूँ जिस्मों को हम दोनो इतना सटा दें

लबों पे मेरे तुम लबों को सजा दो
हया कि दिवारों को मिल कर गिरा दें

सदा साथ रहने कि खाओ कसम तुम
हकीकत में हम खुद कि दुनिया लुटा दें

मोहब्बत से हमको पुकारो तो" आज़र"
तुम्हारे लिय अपनी हस्ती मिटा दें