Last modified on 20 मई 2011, at 17:54

दिल्ली में गांव / रमेश नीलकमल

योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:54, 20 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश नीलकमल |संग्रह=कविताएं रमेश नीलकमल की / रमे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं अपने गांव से दूर आ गया हूँ

अपनों से और भी दूर

पर उस नदी को भूल नहीं पाया

जो बहती है

मेरे गांव के किनारे-किनारे

नदी किसी की दुश्मन नहीं होती

जब भी आओ देर-सबेर

उसके किनारे

वह लोटा भर पानी

हाथ-मुंह धोने के लिए

और गिलास भर पीने के लिए

देती है और पूछने लगती है

हालचाल

कि कहो

कैसे बिताए दिल्ली में

इतने साल?

दिल्ली में

अपने गांव की नदी की याद

बहुत आती है

याद आते हैं अपने लोग भी

उनकी उदास मुसकुराहटें

उगल देती हैं गांव का

सारा कच्चा-चिट्ठा

और मैं टूट-टूट जाता हूं दिल्ली में।