भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल आगे बढ़, पीछे हटता, ये कैसा चक्कर है यारो / हरिराज सिंह 'नूर'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:17, 31 अक्टूबर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल आगे बढ़, पीछे हटता, ये कैसा चक्कर है यारो!
हर ख़्वाब हुआ रेज़ा-रेज़ा, ये कैसी टक्कर है यारो!

सूरज में जिसकी गर्मी है, है चाँद में जिसकी रा’नाई,
महबूब मिरा इस दुनिया में सबसे ही तो बरतर है यारो!

जो अपने लिए रस्ता चुनता,वो राह सभी को दिखलाए,
चलता जो नेक उसूलों पर वो ऐसा रहबर है यारो!

ले हाथ कटोरा भिक्षा का,फिर भी मालिक सारे जग का,
क़िस्मत का खेल ये देखो तो वो फिरता दर-दर है यारो!

जो सारे सुख़नवर छोड़ के भी अपनी ही बात करे पैहम,
ख़ुद ‘नूर’ के ख़्वाबों में आए वो ऐसा दिलबर है यारो!