भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिल एक हों सभी के ये नफ़रत न कर सकी / दरवेश भारती" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दरवेश भारती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
अम्नो-अमां का काम सियासत न कर सकी | अम्नो-अमां का काम सियासत न कर सकी | ||
− | मंज़र | + | मंज़र अजीब था वो तड़पते बशर की जब |
ग़फ़लतशिआर भीड़ हिफ़ाज़त न कर सकी | ग़फ़लतशिआर भीड़ हिफ़ाज़त न कर सकी | ||
19:24, 14 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
दिल एक हों सभी के ये नफ़रत न कर सकी
हों जायें दूर-दूर ये उल्फ़त न कर सकी
घर-घर बनाया रंजो-अलम की पनाहगाह
अम्नो-अमां का काम सियासत न कर सकी
मंज़र अजीब था वो तड़पते बशर की जब
ग़फ़लतशिआर भीड़ हिफ़ाज़त न कर सकी
इन रहबरों की शह से ही हर क़ौम दह्र में
रहकर भी साथ-साथ महब्बत न कर सकी
करके दिखा दिया है जो 'दरवेश' प्यार ने
वो काम काइनात में दौलत न कर सकी