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दिल एक हों सभी के ये नफ़रत न कर सकी / दरवेश भारती

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दिल एक हों सभी के ये नफ़रत न कर सकी
हों जायें दूर-दूर ये उल्फ़त न कर सकी

घर-घर बनाया रंजो-अलम की पनाहगाह
अम्नो-अमां का काम सियासत न कर सकी

मंज़र वो था अजब कि तड़पते बशर की जब
ग़फ़लतशिआर भीड़ हिफ़ाज़त न कर सकी

इन रहबरों की शह से ही हर क़ौम दह्र में
रहकर भी साथ-साथ महब्बत न कर सकी

करके दिखा दिया है जो 'दरवेश' प्यार ने
वो काम काइनात में दौलत न कर सकी