दिल कहीं, और कहीं नज़र रख के
मिलिए ख़ुद को न बेख़बर रख के
कैसे कह दें कि घर से बाहर हैं
घर से निकले हैं सर पे घर रख के
सो रहे हैं मेरी सदी के लोग
नाग की कुण्डली में सर रख के
ख़ुद को ऐसा पड़ा हुआ पाया
चल दिया हो कोई दिगर रख के
कहिए तो सब्ज़बाग़ दिखलाएँ
शबनमों से जुबान तर रख के
बेवज़न बोल के मत हों हल्के
गुफ़्तगू कीजिए बहर रख के