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दिल किसानों के गीत गाते हैं / शोभा कुक्कल

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दिल किसानों के गीत गाते हैं
खेत जिस वक़्त लहलहाते हैं

कोई अपना यहां नहीं खाता
सब मुक़द्दर का लिखा खाते हैं

सारा आलम सराय जैसा है
लोग आते हैं लोग जाते हैं

रोने वाले बहुत हैं दुनिया में
कब हैं जो लोग मुस्कुराते हैं

हाल पूछो हमारा तकिये से
जिसपे आंसू सदा बहाते हैं

ऊनी ग़ज़लों में हम सदा शोभा
ताज़गी का जहां बसाते हैं।