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दिल की लपलपाती जीभ / हेमन्त शेष

दिल की लपलपाती जीभ
और खोल कर बैठा रहता हूँ दिमाग़ का मुंह

कि आए कोई अनूठा विचार और
एक मांसाहारी पौधे की तरह उसे लपक लूँ
भाषाशास्त्रियों को सहानुभूति हो सकती है विचार के प्रारब्ध से
कि उसके भाषा में व्यक्त होने का मायना है -
अर्थ की नब्ज़ का
बस वहीं तक धड़कना