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दिल के वीराने को महफ़िल की तरफ़ ले चलिए / नियाज़ हैदर

दिल के वीराने को महफ़िल की तरफ़ ले चलिए
क्यूँ समुंदर को न साहिल की तरफ़ ले चलिए

आश्ना राज़-ए-हक़ीक़त से तभी होंगे हम
हर हक़ीक़त को जो बातिल की तरफ़ ले चलिए

उस की तल्वार की तारीफ़ सुनूँ मैं कब तक
पहले मुझ को मिरे क़ातिल की तरफ़ ले चलिए

मौत मंज़िल है मसीहा की तो फिर क्या कहना
ज़िंदगी को उसी महफ़िल की तरफ़ ले चलिए

काबा ओ दैर के गुमराहों का अंजाम ही क्या
यही बेहतर है उन्हें दिल की तरफ़ ले चलिए

लोग मुश्किल को जब आसानी की जानिब ले जाएँ
आप आसानी को मुश्किल की तरफ़ ले चलिए

सैर-ए-महताब बहुत ख़ूब सही फिर भी ‘नियाज़’
दिल को महताब-ए-शमाइल की तरफ़ ले चलिए