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दिल को ये इज़ितरार कैसा है / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'

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दिल को ये इज़ितरार कैसा है
देखियों बे-क़रार कैसा है

एक बोसा भी दें नहीं सकता
मुझ को प्यारे तू यार कैसा है

कुश्ता-ए-तेग़-ए-नाज़ क्या जाने
ख़ंजर-ए-आब-दार कैसा है

हर घड़ी गालियाँ ही देते हो
जान मेरी ये प्यार कैसा है

मय नहीं पी क्यूँ छुपाते हो
अंखड़ियों में ख़ुमार कैसा है

और तो हैं ही ये तो कह बारे
‘मुसहफ़ी’ दोस्त-दार कैसा है