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दिल टूटा है जिगर चाक है / महेश कटारे सुगम
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दिल टूटा है जिगर चाक है ।
बाक़ी सब कुछ ठीक-ठाक है ।।
पीते ख़ून गिलासों में ये
इनकी तो ये ही ख़ुराक है ।
पाँच साल जी भर के लूटें
नीयत फिर भी साफ़ पाक है ।
सेवक हैं सुविधाभोगी सब
आख़िर ये कैसा मज़ाक है ।
उस कश्ती में बैठे हैं हम
जिसमें पहले से सुराख़ है ।
28-02-2015