दिल तुझे ग़र दिया नहीं होता
दर्द का सिलसिला नहीं होता
अपने वादे जो निभा जाता वो
जख़्म दिल का हरा नहीं होता
मीरा होती न ग़र दिवानी तो
विष का प्याला पिया नहीं होता
इस तरह से न सताते अपने
अश्क़ इतना बहा नहीं होता
तू निभाता अगर वफ़ा अपनी
दरमियाँ फ़ासला नहीं होता
राम जाते न जंगलों में तो
कोई काँटा चुभा नहीं होता
आसमाँ की न चादरें होतीं
धूल का बिस्तरा नहीं होता