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दिल तो वो बर्गे-ख़िज़ाँ है कि हवा ले जाए / फ़राज़

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दिल तो वो बर्ग़े-ख़िज़ाँ <ref>पतझड़ का पत्ता</ref>है कि हवा ले जाए
ग़म वो आँधी है कि सहरा<ref>रेगिस्तानी जंगल</ref>भी उड़ा ले जाए

कौन लाया तेरी महफ़िल में हमें होश नहीं
कोई आए तेरी महफ़िल से उठा ले जाए

और से और हुए जाते हैं मे’यारे वफ़ा<ref>वफ़ादारी की कसौटियाँ</ref>
अब मताए-दिलो-जाँ <ref>दिल और जान की पूँजी</ref>भी कोई क्या ले जाए

जाने कब उभरे तेरी याद का डूबा हुआ चाँद
जाने कब ध्यान कोई हमको उड़ा ले जाए

यही आवारगी-ए-दिल है तो मंज़िल मालूम
जो भी आए तेरी बातों में लगा ले जाए

दश्ते-गुरबत<ref>दरिद्रता,परदेस</ref>में तुम्हें कौन पुकारेगा ‘फ़राज़’
चल पड़ो ख़ुद ही जिधर दिल की सदा<ref>पुकार</ref>ले जाए

शब्दार्थ
<references/>