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|संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार
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दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
ख़्वाब देखो कि हक़ीक़त से पशेमानी न हो
नफ़रतों का वही मल्बूस पहन लो फिर से
ऐन मुमकिन है ये दुनिया तुम्हें पहचानी न हो।
 
</poem>
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