गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो / शहरयार
3 bytes removed
,
13:17, 29 सितम्बर 2020
|संग्रह=सैरे-जहाँ / शहरयार
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दिल परेशाँ हो मगर आँख में हैरानी न हो
ख़्वाब देखो कि हक़ीक़त से पशेमानी न हो
नफ़रतों का वही मल्बूस पहन लो फिर से
ऐन मुमकिन है ये दुनिया तुम्हें पहचानी न हो।
</poem>
सशुल्क योगदानकर्ता ५
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,053
edits