भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल पे कोई नशा न तारी हो / कविता किरण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:28, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता किरण |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> दिल पे कोई नशा न ता…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल पे कोई नशा न तारी हो,
रूह तक होश में हमारी हो।

चंद फकीरों के संग यारी हो,
मुट्ठी में कायनात सारी हो।

हैं सभी हुस्न की इबादत में,
कौन अख़लाक़ का पुजारी हो।

ज़ख्म भी दे लगाए मरहम भी,
इस कदर नर्म-दिल शिकारी हो।

चाहती हूँ मेरे ख़ुदा मुझ पर
बस तेरे नाम की खुमारी हो।

मौत आए तो बेझिझक चल दें
इतनी पुख़्ता'किरण' तयारी हो।