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दिल से जो लफ़्ज निकले उसे प्यार बना देना
पर आँख से जो बरसे अंगार बना देना
तन्हा हूँ निहत्था हूँ घर से निकल पड़ा हूँ
ईमान को मेरे अब हथियार बना देना
 
दुनिया से दुश्मनी का नामोनिशाँ मिटा दूँ
तिनका भी उठाऊँ तो तलवार बना देना
 
चाँदी की तरह चमके सोने की तरह दमके
मेरे खुदा मेरा वो किरदार बना देना
 
भूखा न कोई सोये प्यासा न कोई तड़पे
मेरी दुआ को या रब दमदार बना देना
 
हमको पता नहीं है चलती है लेखनी कब
जज़्बात को हमारे उद्गार बना देना
 
कश्ती उतार दी है दरिया में तेरे दम पर
तूफ़़ान को भी मौला पतवार बना देना
</poem>
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