दिल हो गया है ग़म से तेरे दाग़-दार ख़ूब
फूला है क्या ही जोश से ये लाला-ज़ार ख़ूब
कब तक रहूँ हिजाब में महरूम वस्ल से
जी में है कीजिए प्यार से बोस-ओ-किनार ख़ूब
साक़ी लगा के बर्फ़ में मय की सुराही ला
आँखों में छा रहा है नशे का ख़ुमार ख़ूब
आया न एक दिन भी तू वादा पे रात को
अच्छा किया सुलूक तग़ाफु़र-शिआर ख़ूब
ऐसी हवा बँधी रहे ‘चंदा’ की या अली
बा-सद-बहार देखे जहाँ की बहार ख़ूब