भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिवला अर बाट /अंकिता पुरोहित

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:25, 6 जुलाई 2013 का अवतरण ('<poem>छोरा घर रा दिवला होवै तो छोरियां होवै बाट दोन्या...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोरा
घर रा
दिवला होवै
तो छोरियां
होवै बाट
दोन्यां नै राख्यां बराबर
सैंचण होवै घर
फेर पसरै ठाट ई ठाट!
 
च्यानणो दिवलो करै
लोगड़ा भरमै क्यूं धरै
बिना बाट
कदैई नीं देख्यो
दिवलै नंै करता च्यानणो।
 
दिवलै अर बाट री
गाथा नैं समझणो पड़सी
दिवलै रै साथै
बाट नैं भी
अरथावणो पड़सी।