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दिवस शरद के / केदारनाथ अग्रवाल

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मुग्ध कमल की तरह

पाँखुरी-पलकें खोले,

कन्धों पर अलियों की व्याकुल

अलकें तोले,

तरल ताल से

दिवस शरद के पास बुलाते

मेरे सपने में रस पीने की
प्यास जगाते !