Last modified on 15 नवम्बर 2009, at 10:56

दीन चहैं करतार जिन्हें सुख / रहीम

अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:56, 15 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रहीम }} <poem> दीन चहैं करतार जिन्हें सुख, सो तौ ’रहीम…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दीन चहैं करतार जिन्हें सुख, सो तौ ’रहीम’ टरै नहिं टारे।
उद्यम पौरुष कीने बिना, धन आवत आपुहिं हाथ पसारे॥
दैव हँसै अपनी अपनी, बिधि के परपंच न जात बिचारे।
बेटा भयो बसुदेव के धाम औ दुंदुभि बाजत नंद के द्वारे॥