Last modified on 2 मार्च 2010, at 09:24

दीन दशा देखि ब्रज-बालनि की उद्धव कौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

दीन दशा देखि ब्रज-बालनि की उद्धव कौ,
गरिगौ गुमान ज्ञान गौरव गुठाने से ।
कहै रतनाकर न आये मुख बैन नैन,
नीर भरि ल्याए भए सकुचि सिहाने से ॥
सूखे से स्रमे से सकबके से सके से थके,
भूले से भ्रमे से भभरे से भकुवाने से,
हौले से हले से हूल-हूले से हिये मैं हाय,
हारे से हरे से रहे हेरत हिराने से ॥28॥