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दीपमाला सज गई.... / ओमप्रकाश यती

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दीपमाला सज गई हर देहरी के सामने
अब अमावस क्या टिकेगी रौशनी के सामने

कुछ बहाने भेज देती है सभी के सामने
मौत ख़ुद आती नहीं है ज़िंदगी के सामने

सब धुरन्धर सर झुकाए हैं खड़े दरबार में
वक़्त कैसा आ गया है द्रौपदी के सामने

चाहता है और ज़्यादा, और ज़्यादा जोड़ना
लक्ष्य शायद अब यही है आदमी के सामने

मानता हूँ है बड़ी काली, बड़ी ज़िद्दी मगर
एक तीली ही बहुत है तीरगी के सामने


शे’र उसके याद हैं पर कौन पहचाने उसे
वो बहुत छोटा है अपनी शाइरी के सामने

था तो भाई ही मगर जब जान पर बन आई तो
कंस कैसे पेश आया देवकी के सामने

सभ्यता इसके किनारे जन्म लेती थी कभी
आज है अस्तित्व का संकट नदी के सामने

सौंपती है पीढ़ियों को वायु कैसी , कैसा जल
है बड़ी भारी चुनौती इस सदी के सामने

ध्यान फिर रखता नहीं है क्यों बुज़ुर्गों का कोई
जबकि आना है यही दिन हर किसी के सामने

साँस जब तक एक भी है ,पास आ सकती नहीं
मौत की औक़ात क्या है ज़िंदगी के सामने