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दीवार से मुख़ातिब / नील कमल

दीवार पर लिखी
तक़दीर
बदलने की ज़िद
हर सुबह का आग़ाज़

एक हाथ है
जो लिखता है

एक हाथ है
जो लिखे को
चाहता है मिटाना

जैसे आईने पर जमी धूल
रेशमी दुपट्टे से पोंछती
लड़कियाँ

फिर
हाथ है
दीवार से मुख़ातिब

और हसरत है
कि दीवार
हो कोई सुंदर आईना ।