भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीवाळी / दीपसिंह भाटी 'दीप'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


                     - दोहा-

सुत पारवतां समरतां, सुरसत मात सहाय।
उकत उपावो आवड़ा, वरणूं छंद वणाय।। 1।।
सगळां परबां सांवठो, दीवाळी शुभ दिन्न।
मौज मनावै मानवी, च्यारूंमेर चमन्न।। 2।।
धन तेरस री धावना, महेलियां रे मन्न।
मुंगी वुसतां मोलवै, धापै खरचे धन्न।। 3।।
रूप चऊदस रमणियां ,सज सोळै सिणगार।
गजबण सुंदर गोरियां, इंद्र परि उणियार।। 4।।

                       
                    छंद - त्रिभंगी

रघुपति रचनायी, लंका ढायी, सीता पायी, शुभदायी।
दशकंध दळायी, लिछमण भाई,अवधपुरायी, ओमायी।
हर जन हरखायी, दीप जळाई, हिवड़े छाई, हरियाळी।
आणद उपजाळी, रुत रूपाळी, दिवलां वाळी, दीवाळी।
                              जिय दीवां वाळी, दीवाळी।। 1।।

करसां रुत काती, मन मदमाती, धान धपाती, धनदाती।
हिवड़ो हरखाती, थाट थपाती, मौज मनाती, मुस्काती।
आवै इठलाती, छंम छमाती, प्रेम बढाती, प्रीताळी।
आणद उपजाळी, रुत रूपाळी, दिवलां वाळी, दीवाळी।
                              जिय दीवां वाळी, दीवाळी।।2।।

अमावस काळी, करै उजाळी, रंग रंगाळी, रणकाळी।
हर घर खुशहाली, सरब सुखाळी,राम रुखाळी,रमझाळी।
चौदिश चमकाळी, धान धपाळी, ताव तपाली, तटकाळी।
आणद उपजाळी, रुत रूपाळी, दिवलां वाळी, दीवाळी।
                              जिय दीवां वाळी, दीवाळी।।3।।

फौड़ेज फटाका, बम्म बमाका, धूम धड़ाका, धम्माका।
राकेट रड़ाका, सोर सड़ाका,भड़ं भड़ाका, भम्माका।
तारा तमाका, रेल रमाका, फुलझड़ फाका, फरकाळी।
आणद उपजाळी, रुत रूपाळी, दिवलां वाळी, दीवाळी।
                              जिय दीवां वाळी, दीवाळी।।4।।

प्रीतां पसरावै, लिछमी लावै, भुआ भगावै, भयजावै।
रिध सिध रळकावै, कोड करावै, मोद भरावै, मनभावै।
खुशियां खळकावै, थिर सुख थावै, देव पुजावै,दिलवाळी।
आणद उपजाळी, रुत रूपाळी, दिवलां वाळी, दीवाळी।
                              जिय दीवां वाळी, दीवाळी।।5।।


ऊजास उपावै, तमस मिटावै, ज्ञान बढावै, गुणथावै।
हीमत हाथावै, करम करावै, जोश जगावै, जीतावै।
कंथा कमवावै, रुपया लावै, घृत जीमावै, घरवाळी।
आणद उपजाळी, रुत रूपाळी, दिवलां वाळी, दीवाळी।
                              जिय दीवां वाळी, दीवाळी।।6।।

मानुष जमवारो,अबखो आरो, कंठ कटारो, करमां रो।
अमीय ऊचारो, वात विचारो, धन हमारो, धरमां रो।
कवि 'दीप' कथारो, सगत सहारो,मात उबारो, ममताळी।
आणद उपजाळी, रुत रूपाळी, दिवलां वाळी, दीवाळी।
                              जिय दीवां वाळी, दीवाळी।।7।।

               कलश छप्पय

दीवाळी - दीदार, बंधव भाव बढावै।
तम हरणो तैवार, मन रो मेल मिटावै।।
प्रगटै घट प्रकाश, अळगो भजै अंधारो।
अंतस ज्ञान उजास, अमरत मुखडे़ उचारो।।
राम थपै अर रावण रुळै, शांति होत नित सौगात।
देवी वरणै कवि 'दीपियो', तो दीवाळी दिनरात।।