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दुखः सुखः मन म नी लावणा / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    दुखः सुखः मन म नी लावणा,
    आरे रघुनाथ नी घड़ीया

(१) हरिशचँद्र सरीका हो राजवई,
    जीन घर तारावंती राणी
    अपणा सत् का हो कारणा
    भर नीच घर पाणी...
    दुखः सुखः मन...

(२) नल भऊ सरीका हो राजवई,
    जीन घर दमवंती राणी
    अपणा सत् का हो कारणा
    मील अन्न नही पाणी...
    दुखः सुखः मन...

(३) द्रोपती सरीकी हो महासती,
    जीनका पांडव स्वामी
    चिर दुःशासन खईचीयाँ
    चीर पुरावे मुरारी...
    दुखः सुखः मन...

(४) सीता सरीकी हो महा सती,
    जिनका रामचंद्र स्वामी
    रावण कपटी लई हो गया
    सुंदर बिलखानी...
    दुखः सुखः मन...

(५) हनुमान सरीका हो महायोद्धा,
    आरे बल मे बल वंता
    सीता की सुद हो लावीयाँ
    चड़े तेल लंगोटा...
    दुखः सुखः मन...