भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुखी दिलों की लिए ताज़याना रखता है / अंजुम रूमानी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:15, 4 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजुम रूमानी }} {{KKCatGhazal}} <poem> दुखी दिलो...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुखी दिलों की लिए ताज़याना रखता है
हर एक शख़्स यहाँ इक फ़साना रखता है

किसी भी हाल में राज़ी नहीं है दिल हम से
हर इक तरह का ये काफ़िर बहाना रखता है

अज़ल से ढंग हैं दिल के अजीब से शायद
किसी से रस्म-ओ-रह-ए-ग़ाएबाना रखता है

कोई तो फ़ैज़ है कोई तो बात है इस में
किसी को दोस्त यूँही कब ज़माना रखता है

फ़कीह-ए-शहर की बातों से दर-गुज़र बेहतर
बशर है और ग़म-ए-आब-ओ-दाना रखता है

मुआमलात-ए-जहाँ की ख़बर ही क्या उस को
मुआमला ही किसी से रखा न रखता है

हमीं ने आज तक अपनी तरह नहीं देखा
तवक़्क़ुआत बहुत कुछ ज़माना रखता है

क़लंदरी है की रखता है दिल ग़नी ‘अंजुम’
कोई दुकाँ न कोई कार-ख़ाना रखता है