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दुख के बारे में एक और खोज / शशिप्रकाश

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दुख अन्त की भाषा था I
और भाषा का अन्त था I
अन्धेरे का व्याकरण था दुख
और व्याकरण का अन्धेरा I
दुख था अकेलेपन की चीख़
और एक चीख़ का अकेलापन I
 
दुख अन्दर की खोहों की
निरुद्देश्य खोजपूर्ण यात्रा था I
दुख अकेले भोग लेने की
एक स्वार्थपूर्ण कामना था I
दुख जूते में घुसा हुआ एक कंकड़,
बहा दिया गया आंसू का एक कतरा था I

दुख था बहुत कुछ जानना
और लगातार जानना
और सिर्फ़ जानना I

दुख आत्मा पर एक धब्बा था अपरिहार्य,
दुनिया की तमाम अपूर्ण कामनाओं की
हिलती हुई छाया था I
यह पाया कि सबसे बड़ा दुख था फिर भी
यह जानना कि दुख है
और यह न जानना कि
इसके कारण क्या हैं ?

नवम्बर, 1998