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दुख / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

यह कैसा तूफान है
हुआ अंधेरा
आँधी आई
बरसा आई
प्रलय छेड़ता तान है।
सावन में बहती पूरबा है
गाँव-शहर नदी में डूबे हैं।
डूबे अन्न फसल लहराई
भूख चढ़ी परबान है।
कलुआ ने किसना को मारा,
पेपर में छप गई खबर है
ठीकेदार फिर रहा अकड़ है।
वही बांध बंधवायेगा
जो तुरंत टूट बह जायेगा।
रोज रेडियों का कहना है
चावल, गेहूँ को आना है
रो-रो कर ननकी है कहती
बरसों से तो यही सुना है
उपर हाथ उठाकर कहती है
जेबू खाला-
कहाँ खुदा मुस्लिम का भैया ?
कहाँ हिन्दू का भगवान है ?