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दुधिया कमल पर, दुधिया वसन पिन्ही / अनिल शंकर झा

दुधिया कमल पर, दुधिया वसन पिन्ही
बैठली सरस्वतीजी, मंद-मंद मुसकै।
ढिबरी सन आँख हेरॅ ममता आ ज्ञान बाँटै
गोरोॅ गोरोॅ गाल गात, फूल बनी महुकै।
दुधिया जेबर शोभै, अंग लागी छंद मोहै
कविता कला में प्राण मान बनी बिहसै।
गुणी गुणवन्त हंस, वीण के मंदिर बंद
कुंद की कली के दंत, मंद-मंद चमकै।