भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुधिया कमल पर, दुधिया वसन पिन्ही / अनिल शंकर झा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 24 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल शंकर झा |अनुवादक= |संग्रह=अहि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दुधिया कमल पर, दुधिया वसन पिन्ही
बैठली सरस्वतीजी, मंद-मंद मुसकै।
ढिबरी सन आँख हेरॅ ममता आ ज्ञान बाँटै
गोरोॅ गोरोॅ गाल गात, फूल बनी महुकै।
दुधिया जेबर शोभै, अंग लागी छंद मोहै
कविता कला में प्राण मान बनी बिहसै।
गुणी गुणवन्त हंस, वीण के मंदिर बंद
कुंद की कली के दंत, मंद-मंद चमकै।