भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनियाँ में तो सब रहते हैं पर / अशेष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:31, 23 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशेष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया में तो सब रहते हैं पर
सबकी दुनियाँ अलग होती है...

जो चीज़ किसी को हो ज़रूरी
वही सबको ज़रूरी नहीं होती है...

यूँ तो दिखते हैं सब एक जैसे
सब की परिस्थिति भिन्न होती है...

किसी दूसरे को देख मत ललचना
हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती है...

क़िस्मत को कोसते ही न बैठिये साहब
ईमानदार कोशिश भी कुछ होती है...

मतलब के सम्बंध लंबे नहीं चलते
सच्ची दोस्ती तो निस्वार्थ ही होती है...

दिमाग तो सबके पास है मगर
सबकी सोच अलग-अलग होती है...