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दुनिया जी कर मरी / बलबीर सिंह 'रंग'

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दुनिया जीकर मरी किन्तु तुम मरकर भी जी गये
अमर तुम मर कर भी जी गये।

सत्य बन गया स्वप्न
धूल में मिली शांति परिभाषा
ऐसे समय कहो कैसे दे
किसको कौन दिलासा

क्यांेकि टूटते देखा जग ने
धरती पर धु्रव तारा
जाने क्या क्या रंग लायेगा
यह बलिदान तुम्हारा

मरण-सूत्र से जन जीवन के द्रवित घाव सी गये
अमर तुम मर कर भी जी गये।

क्रम क्रम से आये थे
रघुवर, कृष्ण बुद्ध से योगी
लेकिन बापू के अभाव की
पूर्ति भला क्या होगी

‘मोहन के बिछोह में व्याकुल
मानवता की राधा
राम राज्य के पुरुषोत्तम की
कम्पित दृढ़ मर्यादा!

अमृत बिन्दु के लिये देव तुम गरल सिन्धु पी गये
अमर तुम मर कर भी जी गये।

दुनिया जीकर मरी किन्तु तुम मर कर भी जीगये
अमर तुम मर कर भी जी गये।