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दुनिया ना मानेगी कब तक? / रामगोपाल 'रुद्र'

दुनिया से तू ऊपर उठ जा
भूधर होकर भू पर उठ जा
चट्‍टान बना ले तन अपना
हिमवान बना ले मन अपना
फिर देख कि फेरों के बादल
ये वज्र गिरानेवाले दल
किस भाँति कहाँ तक आते हैं
किस-किस ढब से टकराते हैं
क्या-क्या हो कर भहराते हैं
पानी होकर बह जाते हैं!

घनघोर घटा के घेरे से
ऊपर तेरी वह ऊँचाई
दुनिया ना जानेगी कब तक?

दुनिया तुझसे जो रूठ गई
तेरी हिम्मत क्यों टूट गई?
दुनिया चलती है, तू भी चल
दुनिया के चक्कर से न बिचल
चल दे, ख़ुद बन जाएगा पथ
दो पद ही तो पौरुष के रथ
जब तू आगे बढ़ जाएगा
संसार स्वयं तब आएगा
अपनी गति पर पछताएगा
रो-रोकर मान मनाएगा

बढ़ता जा मेरे सत्यवान!
मत सोच कि तेरा सत्य मान
दुनिया पहचानेगी कबतक।