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दुर्लभ वाद्य-विनोद / यानिस रित्सोस / विष्णु खरे

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उसने वस्तुओं, शब्दों और चिड़ियों को चाहना
बन्द कर दिया था —
वे सब संकेत या प्रतीक बन गए थे ।
(इस नियति से लगभग कुछ भी नहीं बचा था ।)

इसलिए उसने अपना मुँह
मज़बूती से बन्द रखना पसन्द किया ।

वह गूँगों और बहरों की तरह
अजीब हरकतें करने लगा,
थिर, अबूझ, कड़वी और थोड़ी छिछोरी ।

लेकिन ये भी,
कुछ बरसों के बाद,
संकेतों में बदल गईं।

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे