भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुविधा में जीवन कटे / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुविधा में जीवन कटे, पास न हों यदि दाम।
रूपया पैसे से जुटें, घर की चीज तमाम॥
घर की चीज तमाम, दाम ही सब कुछ भैया।
मेला लगे उदास, न हों यदि पास रुपैया।
'ठकुरेला' कविराय, दाम से मिलती सुविधा।
बिना दाम के मीत, जगत में सौ सौ दुविधा॥