भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुश्मन को लाचार क्या करे / हरि फ़ैज़ाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुश्मन को लाचार क्या करे
ज़ंग लगी तलवार क्या करे

नामुमकिन ख़ुश करना सबको
सोच रहा सरदार क्या करे

दिल दुनिया का रक्खे कोई
तो अपना संसार क्या करे

इस क़ुदरत पर बस किसका है
तूफ़ां में पतवार क्या करे

पैरों ने इन्कार कर दिया
पायल अब झन्कार क्या करे

झगड़ा भाई-भाई का है
हल मुंसिफ़, सरकार क्या करे

रोज़-रोज़ ही मरकर नाहक़
एक काम सौ बार क्या करे