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दुसमन देस के दबावे खाती आवत बाटे / रामवचन द्विवेदी 'अरविन्द'

दुसमन देस के दबावे खाती आवत बाटे
उठ भइया उठ अब देर ना लगाई जा।।
लड़े-भीड़े में तो हम सगरे प्रसिद्ध बानी
आव ई बहादुरी लड़ाई में देखाई जा।

लाठी लीहीं, सोटा लीहीं, काता ओ कुदारी लीहीं,
हाथ में गड़ासा लीहीं आगे-आगे धाईं जा।।
हमनी के टोली देखि थर-थर जग काँपे,
पानी में भी आव आज आग धधकाईं जा।

भीम अरजुन द्रोन हमरे इहाँ के रहन,
हमनी भी आज महाभारत रचाई जा।।
महाबीर भीम बनी हनूमान धीर बनी,
पारथ गंभीर बनी परले मचाई जा।

तेगा तलवार बान किरिच बन्दूक लेइ,
धम-धम धाम-धाम रन ओर जाईं जा।।
समने जे आवे ऊ त सरग सिधारे बस,
छप-छप रुण्ड-मुण्ड काटि के गिराई जा।

राना परताप वीर सिवाजी वो सेरसाह,
झाँसी वाली रानी के तो ध्यान जरा लाईं जा।।
लवकुश लइकन से सीखीं जा बहादुरी वो,
अभिमनु जुबक से बिहु तोरि आईं जा।

घोड़ा हहनात बाटे, लोहा झनझनात बाटे,
झण्डा पहरात बाटे, कदम बढ़ाई जा।।
डंटा मिले, खंता मिले, तलवार भाला मिले,
जेहि हथियार मिले सेहि लेहे धाईं जा।।

गंगा से पबीतर वो जमुना से निरमल,
सुन्दर सुभूमि पर दाग ना लगाईं जा।।