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दूरी / वीरेंद्र आस्तिक

इतने वर्षों में केवल
दुनिया छोटी हुई
किलों की दूरियाँ बढ़ी

कोयल बागी हुई भूमिगत
बागों में कौवों का बहुमत
गिद्दों की अगवानी में
डाल-डाल उखड़ी

उतर गया शेरों का चश्मा
अजरज, कहीं न कोई सदमा

जंगल में उल्लू के कुल-
की ही शाख़ बढ़ी