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दूर के जल्वों की शादाबी का दिल-दादा न हो / नौ बहार साबिर

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दूर के जल्वों की शादाबी<ref>ख़ुशी, तरोताज़गी, हरा-भरापन, प्रफुल्लता, सम्पन्नता</ref> का दिल-दादा<ref>किसी पर मोहित होना, फ़ैन होना</ref> न हो
तू जिसे दरिया समझता है कहीं सहरा<ref>रेहिस्तान, जंगल, बयाबान, विराना</ref> न हो

आइने को एक मुद्दत हो गई देखे हुए
वो ज़बीन-ए-शौक़<ref>प्रेम का चेहरा</ref> जिसपर सोच का साया न हो

वो भी मेरे पास से गुज़रा उसी अन्दाज़ से
मैंने भी ज़ाहिर किया जैसे उसे देखा न हो

इस तरफ़ क्या तुर्फ़ा<ref>दुर्लभ, अजीब</ref> आलम<ref>दशा, हाल, दुनिया, संसार</ref> है ये खुल सकता नहीं
आदमी का क़द मगर दीवार से ऊँचा न हो

मस्लहत<ref>सतर्क, सावधान</ref> चाहे रहूँ डाले तसन्नो<ref>कृत्रिमता</ref> का नक़ाब
दोस्ती की माँग चेहरे पे कोई पर्दा न हो

धूप से घबरा के बैठा तो है लेकिन देख ले
ये किसी गिरती हुई दीवार का साया न हो

क़हक़हों की छाँव में एक शख़्स बैठा है उदास
वो भी मेरी ही तरह इस भीड़ में तन्हा न हो

’साबिर’ इन मानूस<ref>परिचित, जान-पहचानवाली</ref> गलियों से तो दिल उकता गया
आ चलें इस शहर में पहले जैसा देखा न हो

शब्दार्थ
<references/>