भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई / गोपाल सिंह नेपाली

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:22, 21 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली }} {{KKCatGeet}} <poem> दूर पपीहा बोला रात आ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई

मेरा मन है उदास जिया मंद मंद है
बादलों के घेरे में चाँद नज़रबंद है
बादल आये पर बरसात बाक़ी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गयी

दूर पपीहा बोला...

आँख मिचौली खेली, झूला झूम के झूले
बन में चमेली फूली, हम बहार में भूले
पर देनी थी जो सौगात बाक़ी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई

दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई
मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई

(1948) फ़िल्म 'गजरे'