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दूर रक्खे ख़ुदा ज़लालत से / हरि फ़ैज़ाबादी

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दूर रक्खे ख़ुदा ज़लालत से
चाहे कम ही नवाजे़ दौलत से

छोड़िये वो भी कोई रौनक़ है
लोग देखें जिसे हिक़ारत से

और कुछ दीजिए भिखारी को
पेट भरता नहीं नसीहत से

ज़िंदगी लौटती नहीं जा के
इसको रक्खो बड़ी हिफ़ाज़त से

कुछ बड़े आदमी इसी से हैं
क्योंकि हैं दूर आदमीयत से

एक के बल पे सिर्फ़ चलता है
बढ़ता है घर सभी की मेहनत से

आदमी यूँ बड़ा नहीं होता
होता है ये बड़ों की सोहबत से