भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर से ही क़रीब लगते हैं / बी. आर. विप्लवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर से ही क़रीब लगते हैं
उनसे रिश्ते अज़ीब लगते हैं

उनकी आराइशों<ref>सजावट</ref> से क्या लेना
उनके गेसू सलीब लगते हैं

जो हुकूमत से लड़ते रहते हैं
वो बड़े बदनसीब लगते हैं

नेक नीयत नहीं दुआओं में
लोग दिल से ग़रीब लगते हैं

'विप्लवी' सोने की कलम वाले
आज आला अदीब<ref>साहित्यकार</ref> लगते हैं

शब्दार्थ
<references/>