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|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
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राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये
पांव पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थेकि नज़र आये वहां वहाँ ख़ून के गहरे धब्बेपांव पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे
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