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{{KKRachna
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
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राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे
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